November 21, 2024

‘नारी की पहचान

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मैं अबला नहीं,

अंजान नहीं ।।

अनभिज्ञ नहीं ,

नादान नहीं ।।

अब दबी हुई,

पहचान नहीं ।।

चरणों की रज,

के समान नहीं ।।

स्वाभिमानी हूँ,

बलशाली हूँ ।।

खुद्दार भी हूँ,

जग का सार भी हूँ ।।

मैं आधुनिक युग,

की नारी हूँ ।।

परिपूर्ण ज्ञान से,

सुसज्जित हूँ ।।

इस जग की ,

पालन हारी हूँ ।।

प्रेम,समर्पण,

दया व ममता ,

हैं मेरी शक्ति के,

ही रूप कई।।

चलती हूँ सदा,

सन्मार्ग पर मैं ।।

यही मेरी बनी,

पहचान सही।।

अपनी मर्यादा का,

है ज्ञान मुझे ।।

मुझसे ही जग,

की नींव बनी।।

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डा नीलम सिंह चाहर

प्रा वि नगला विष्णु 2कंपोजिट खेरागढ आगरा

आगरा उ प्र

स्वरचित

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