आवास विकास स्थित राजकीय महाविद्यालय बदायूं में हिंदी विभाग के तत्वावधान में एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। ‘ महादेवी वर्मा और उनकी साहित्य साधना ‘ विषय पर आयोजित संगोष्ठी के मुख्य अतिथि बरेली कॉलेज बरेली के हिंदी साहित्य के प्रोफेसर डॉ श्याम सिंह मौर्य ने माता सरस्वती की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का उद्घाटन किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्राचार्य डॉ श्रद्धा गुप्ता ने किया तथा संचालन डॉक्टर प्रेमचंद चौधरी ने किया।
संगोष्ठी में छात्र-छात्राओं की व्याख्यान प्रतियोगिता भी कराई गई, जिसमें प्रथम स्थान स्नेहा पाण्डेय को प्राप्त हुआ। दूसरे स्थान पर संयुक्त रूप से निखिल सिंह चौहान एवं सुहानी गुप्ता रही। अनूप सिंह,पवन कुमार, नव्या शाक्य एवम प्रियंका गुप्ता ने संयुक्त रूप से तीसरा स्थान प्राप्त किया। विजेता प्रतिभागियों को मुख्य अतिथि ने पुरस्कृत कर प्रमाण पत्र प्रदान किया।
मुख्य अतिथि प्रोफ़ेसर मौर्या ने कहा कि महादेवी के काव्य में वेदना की परिणति आनंद में होती है। उनकी रचना दुख और पीड़ा के बोझ तले घुट – घुटकर सिसकती नहीं अपितु निरंतर बढ़ते हुए आनंद भाव की ओर उन्मुख होती है।वह आनंद की ऐसी अवस्था है, जहां ‘ नयन त्रवणमय श्रवण नयनमय ‘ हो जाता है। महादेवी के काव्य में वेदना की धारा प्रवाहित होकर अंततःआनंद के सागर में ही जा मिलती है। मुख्य अतिथि ने कहा कि मृत्यु को भी महादेवी वर्मा अंत अथवा दुखद नहीं मानती। उनकी दृष्टि में
‘‘ अमरत है जीवन का हास ’’
मृत्यु जीवन का चरम विकास ’’
मृत्यु तो नियति है जो आनंद के ही सौ द्वार खोल दे।
डॉ प्रेमचन्द ने बताया कि महादेवी वर्मा की कविताओं में रहस्यानुभूति की उपस्थिति का आंकलन करें तो भी यही प्रमाणित होता है कि वह सर्वत्र और प्रत्येक उपादान तथा प्रकृति – व्यापार में एक विराट सत्ता के दर्शन होते हैं। वह उसके साथ तादात्म्य,साक्षात्कार को व्याकुल दिखाई देती है। यहीं से उनके काव्य में रहस्य की सृष्टि होती है। वे स्वयं को प्रकृति का ही अंग मानकर उस दिव्य सत्ता से मिलन को तत्पर रहती हैं। डॉ अंशु सत्यार्थी ने कहा कि महादेवी का मूर्त और अमूर्त जगत एक – दूसरे से इस प्रकार मिले हुए हैं कि एक यथार्थवादी दूसरे को रहस्यदृष्टा बनकर ही पूर्णता पाता है। उनका नारी होना इस रहस्यवाद को और भी गहन करता है।वे एक रागात्मक संबंध स्थापित करती है।
प्राचार्य डॉ श्रद्धा गुप्ता ने कहा कि महादेवी के काव्य में दुःख और करूणा का भाव प्रधान है। वेदना के विभिन्न रूपों की उपस्थिति उनके काव्य की एक प्रमुख विशेषता है।वह यह स्वीकार करने में कोई संकोच नहीं करती कि वह ‘ नीर भरी दुख की बदली है। ’
व्याख्यान प्रतियोगिता में निर्णायक की भूमिका का निर्वहन डॉक्टर हुकुम सिंह डॉ राकेश कुमार जायसवाल एवं डॉ संजय कुमार ने किया इस अवसर पर डॉ बबिता यादव, डॉ अनिल कुमार, डॉ ज्योति विश्नोई, डॉ सतीश सिंह,डॉ पवन शर्मा,डॉ दिलीप वर्मा,डॉ राजधारी यादव आदि उपस्थित थे।