आदर्श शिक्षक सम्मान 2023 के पटल को नमन
**महिला दिवस पर स्वरचित कविता**
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मैं आधुनिक नारी हूं!
सशक्त हूँ तृष्णाओं से परे हूँ !
तभी तो घर को स्वर्ग बनाती हूँ !आदर्श नारी कहलाती हूँ।
घर की देवी कहलाती हूँ ॥
जगाकर ओज की ज्वाला
संस्कारों से सजी हुई!
मैं मर्यादा के गहनों से देह को सजाती हूँ ॥
अपनत्व के पुष्पों से रिश्तों को संवारती
प्रकृति के सानिध्य में जीवन को सुखद बनाती हूँ ॥
घर के कलह क्लेशों को तिनके सा उड़ा देतीं हूँ।
मैंने जीवन के संघर्षो में तपकर खुद को कंचन बनाया है
कोई उपहास उड़ाये ,मैं बचकर निकल जाती हूँ ॥
योग ध्यान कलाओं से आत्मविश्वास जगा
ईश् वंदना कर खुद को पवित्र बनातीहूँ ॥
छोटों को आशीर्वाद दे , बड़ों को चरण स्पर्श करती हूँ।
आधुनिकता से परिपूर्ण हूँ अंध विश्वास से दूर
विधि सम्मत कर्म कर खुद के नियम बनाती हूँ ॥
मैं अबला नहीँ सबला हूँ ये भाव जगाती हूँ ॥
मैं तलवार ना चलाऊं तो क्या?
ज्ञान की धार से विकारों को काटती चरित्र को उच्च रख गर्व से शिक्षिका कहलाती हूं॥
साभार -श्रीमती पल्लवी शर्मा
राजकला पी डी ए गर्ल्स इ का मुरादाबाद