स्त्री के चरित्रहीनता की परिभाषा क्या होती है…
- स्त्री के चरित्रहीनता की परिभाषा क्या होती है, क्यों समाज उठाता उस स्त्री पर अंगुली जो अपने लिए जीती है, क्या सोचा कभी किसी ने क्यों चीख़ पड़ी वो अंतर्मन से, जब चारों तरफ़ हताश हुई, नाज़वाब हुई,तब लड़ी लड़ाई उसने सबसे, जब उदर माँगता रोटी है, तन भी कपड़ा कपड़ा चिल्लाता है, रोज़ नई इक मांग है, उठती तो भीतर उर कचूटाता है, तब अपने अस्तित्व व बच्चों की खातिर,
इक स्त्री दहलीज पार करती है, छोड़ के सारे जग की मर्यादा, वो अपने अधिकारों,वज़ूद के लिए लड़ती, चारों तरफ़ से लोग घेरते, रस्ता उस आत्मजा का रोकते, नित नयी बातें उठा कर, खुले मुँह से चरित्र का बखाण वो करते, चटरस आता है ऐसी बातों से आस पास व समाज को, क्या कभी सोचते है निर्लज्ज उस नारी के मनोभाव को, ये देख प्रकृति भी कभी रोती है, कभी हंसती है, जब इक स्त्री का शोषण दूजी स्त्री ही करती है, फिर इक दिन इन्हीं समाज के महानुभावों के गलियारे से नारी दिवस पर जयकारे की गूंज लगती है,
नवरात्रों में कन्या पूजा से पंडाल सज जाता और माता की चौकी लगती है, फिर किस घर की वो स्त्री है जो पंचायत,कोर्ट- कचहरी, समाज, अपने पूर्वजों, पुरखों का मुँह तकती है, वो क्यों सब के आगे न्याय की गुहार लगाती फिरती है, ग़र कर दे सारा जीवन समर्पित इक स्त्री के नाम पर, ये जन्म भी कम पड़ जाएगा इतने है
अहसान हम पर, इक क्षण नहीं, इक दिवस नहीं, इक माह नहीं, इक वर्ष नहीं, नारी के लिए उत्सव मनाने ख़ातिर इक युग भी कम पड़ जाएगा, क्योंकि ये उत्सव तो हर पल मनाना होगा, तभी ये ऋण चुक पायेगा, अरे नारी दिवस, मातृत्व दिवस मनाने से पहले, मेरे होने, मेरी स्वतंत्रता का थोड़ा सा अंश तो दे दो, मेरे हक, अधिकार, होने का एहसास, मुझे उपहार स्वरूप दे दो ।।
नगेंद्र बाला बारैठ, हाल निवासी दिल्ली