November 22, 2024

 

 

राजकीय महाविद्यालय आवास विकास,बदायूँ में वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की पुण्यतिथि शहीदी दिवस के रूप में मनाया गया।आजादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत राजनीति विज्ञान विभाग के तत्वाधान में एक संगोष्ठी का आयोजन कर वीरांगना को श्रद्धांजलि अर्पित की गई।

 गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए विभागाध्यक्ष डॉ डाली ने कहा कि लक्ष्मी बाई समस्त नारी समाज के लिए प्रेरणा की स्रोत हैं। उनका स्मरण करने मात्र से ही शरीर में साहस और शक्ति का संचार होता है।मुख्य अतिथि दमयन्ती राज आनन्द राजकीय महाविद्यालय बिसौली की राजनीति विज्ञान की विभागाध्यक्ष डॉ सीमा रानी ने कहा कि सुभद्रा कुमारी चौहान की पंक्तियों बुंदेले हर बोलों के मुंह, हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झांसी वाली रानी थी, आज भी न केवल महारानी लक्ष्मीबाई की वीरगाथा बयां करती हैं, बल्कि इनको पढ़ने-गुनगुनाने मात्र से मन में देशभक्ति का ज्वार उठता है।

कार्यक्रम का संचालन करते हुए डॉ राकेश कुमार जायसवाल ने कहा कि आजादी के महासंग्राम का स्वर्णिम अध्याय बनी झांसी की इस वीरांगना की शहादत को यह देश कभी नहीं भूल सकता। लक्ष्मी बाई आज ही के दिन वर्ष 1857 में अंग्रेजों से लोहा लेते हुए शहीद हो गई थीं।

हिंदी के प्रवक्ता डॉ प्रेमचंद चौधरी ने कहा कि अश्वारोहण और शस्त्र-संधान में निपुण महारानी लक्ष्मीबाई ने झांसी किले के अंदर ही महिला-सेना खड़ी कर ली थी, जिसका संचालन वह स्वयं मर्दानी पोशाक पहनकर करती थीं। राजनीति विज्ञान के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ दिलीप वर्मा नहीं कहा कि वीरांगना के पति राजा गंगाधर राव ने जब प्राण त्याग दिए और झांसी शोक में डूब गई तब अंग्रेजों ने अपनी कुटिल नीति के बल पर झांसी पर आक्रमण कर दिया। लक्ष्मीबाई इकाई की कार्यक्रम अधिकारी डॉ बबिता यादव ने लक्ष्मीबाई के पराक्रम पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि

22 मई 1857 को क्रांतिकारियों को कालपी छोड़कर ग्वालियर जाना पड़ा। 17 जून को फिर युद्ध हुआ। रानी के भयंकर प्रहारों से अंग्रेजों को पीछे हटना पड़ा।महारानी की विजय हुई, लेकिन 18 जून को ह्यूरोज स्वयं युद्धभूमि में आ डटा. लक्ष्मीबाई ने दामोदर राव को रामचंद्र देशमुख को सौंप दिया।सोनरेखा नाले को रानी का घोड़ा पार नहीं कर सका। वहीं एक सैनिक ने पीछे से रानी पर तलवार से ऐसा जोरदार प्रहार किया कि उनके सिर का दाहिना भाग कट गया और आंख बाहर निकल आई. घायल होते हुए भी उन्होंने उस अंग्रेज सैनिक का काम तमाम कर दिया और फिर अपने प्राण त्याग दिए।18 जून, 1857 को बाबा गंगादास की कुटिया में जहां इस वीर महारानी ने प्राणांत किया वहीं चिता बनाकर उनका अंतिम संस्कार किया गया। डॉ गौरव सिंह ने कहा कि

लक्ष्मीबाई ने कम उम्र में ही साबित कर दिया कि वह न सिर्फ बेहतरीन सेनापति हैं बल्कि कुशल प्रशासक भी हैं।

इस अवसर पर डॉ ज्योति विश्नोई,डॉ सचिन राघव,संजीव शाक्य,स्नेहा पांडेय,सन्ध्या, रिज़वी,अनुज प्रताप, वर्षा सोलंकी,वैष्णवी शर्मा,प्रमोद शाहू, अपसार गाज़ी,अभिनव गौतम, उर्वशी, शिल्पी सिंह,आशीष,सचिन यादव, शैलेश,आयुषी,मोहित,सिकल कुमार आदि ने अपने विचार व्यक्त कर श्रद्धांजलि अर्पित किया।

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