राजकीय महाविद्यालय आवास विकास बदायूं में राजनीति विज्ञान विभाग और हिन्दी साहित्य परिषद के संयुक्त तत्वावधान में राष्ट्रवादी तमिल कवि सुब्रमण्यम भारती के जन्मदिवस को भारतीय भाषा उत्सव के रूप में मनाया गया। इस अवसर पर प्राचार्य डॉ श्रद्धा गुप्ता की अध्यक्षता में विचार गोष्ठी हुई।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए राजनीति विज्ञान के विभागाध्यक्ष डॉ राकेश कुमार जायसवाल ने कहा कि भारत विविधताओं का देश है। बहुरंगी भौगोलिक, सांस्कृतिक, खान-पान, रहन-सहन, आस्था, मान्यताओं की विविधताओं में भाषा भी एक मुख्य अवयव है। उत्तर-दक्षिण के सेतु नाम से विख्यात सुब्रमण्यम भारती ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अपनी लेखनी से जनमानस को आंदोलन के लिए प्रेरित किया था। तमिलनाडु व वाराणसी में शिक्षा ग्रहण करने वाले महाकवि ने राष्ट्रवाद की भावना से ओत-प्रोत ज्वलंत गीत रचे। डॉ जायसवाल ने बताया कि इस उत्सव से हर भारतीय में स्वभाषा के साथ दूसरी भारतीय भाषाओं की समझ, उनके प्रति सम्मान और उन्हें सीखने की ललक बढ़ेगी। पड़ोसी भाषा के प्रति सम्मान एवं उससे ज्ञानार्जन हेतु योग्यता विकसित करने हेतु ‘भाषा सद्भाव’ की आवश्यकता है।
हिन्दी के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ प्रेमचन्द चौधरी ने ऋग्वेद को उद्धृत करते हुए कहा कि धीर पुरुष वाणी को चलनी में छने हुए सत्तू के समान रच कर उच्चारित करते हैं। उनकी वाणी में उनका सख्य भाव ज्ञात होता है। उनकी वाणी में पवित्र गुण प्रतिष्ठित होती है। कबीर ने कहा है- ‘संस्कीरत है कूप जल, भाखा बहता नीर।’
इतिहास के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ संजय कुमार ने कहा कि तथाकथित इतिहासकारों ने आर्य-द्रविड़ संघर्ष की झूठी कहानी गढ़ी और इनकी भाषाओं के मध्य द्वंद्व का सिद्धांत रचा। फलस्वरूप, उत्तर एवं दक्षिण भारत की भाषाओं के बीच वैमनस्य का वातावरण निर्मित हुआ। खासतौर से, विदेशी राज में भारतीय भाषाओं का क्षरण हुआ। शिक्षा की मैकालियन पद्धति ने भारतीय भाषाओं को तिरस्कृत कर अंग्रेजी को संरक्षित व संवर्धित किया। अंग्रेजी को राज-काज और शिक्षा की भाषा के रूप में भारतीय जनमानस पर थोपा। अंग्रेजों ने अंग्रेजी में विज्ञान, तकनीक और चिकित्सा से संबंधित पठन-पाठन एवं शोध करने का षड्यंत्र रचा।
समाजशास्त्र के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ सतीश सिंह यादव ने कहा कि बचपन में बच्चों पर विदेशी भाषा थोपने से उनका चहुंमुखी विकास बाधित होता है। यह शोध में भी साबित हुआ है कि मातृभाषा में बच्चे अधिक गुणवत्तापूर्ण ज्ञान प्राप्त करते हैं। व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की पढ़ाई भी भारतीय भाषाओं में होनी चाहिए। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 भारतीय भाषाओं में माध्यमिक तक की पढ़ाई की बात तो करती है, लेकिन उच्च शिक्षा में भारतीय भाषाओं को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है।
इग्नू के समन्वयक डॉ संजीव राठौर ने कहा कि विडंबना यह रही कि स्वतंत्रता के बाद भी सरकारों ने भारतीय भाषाओं के विकास, उनके संरक्षण पर जोर न देकर एक प्रकार से अंग्रेजी राज का अनुगमन किया। इससे हम भारत को जानना-पहचानना भूल गए। भारत का बनना एवं बनाना भूल गए और पाश्चात्य सभ्यता के प्रति हमारा आकर्षण उत्तरोत्तर बढ़ता गया। भारत की प्रामाणिक ज्ञान परंपरा की मुहर पश्चिम से लगने लगी। उन्होंने कहा कि इसका दुष्परिणाम यह है कि ‘कोस कोस पर पानी बदले, चार कोस पर बानी’ वाले देश में बीते 50 साल में करीब 20 प्रतिशत भाषाएं विलुप्त हो गई और कई विलुप्तता के कगार पर हैं। हमारी भाषाएं विलुप्त न हों, उनमें निहित ज्ञान-संपदा सुरक्षित रहकर भावी पीढ़ी का मार्गदर्शन करती रहें, इस निमित्त अब भारतीय भाषाओं की स्वीकृति एवं सम्मान की बात जोर पकड़ने लगी है। सदियों से हमारी सभ्यता की अविरल धारा हमारी भाषा, संस्कृति व लोकजीवन में संरक्षित रही है। स्थानीय भाषाओं ने हमारी संस्कृति की प्राणवायु बनकर उसे विकसित होने में अतुलनीय योगदान दिया है।
अन्त में कार्यक्रम की अध्यक्ष प्राचार्या डॉ श्रद्धा गुप्ता ने कहा कि भारत भाषाई दृष्टि से दुनिया का सर्वाधिक समृद्ध देश है। भाषाई संपन्नता के दृष्टिगत संविधान निर्माताओं ने शुरू में 8वीं अनुसूची में 14 भाषाएं रखी थीं, जो बढ़कर 22 हो गई हैं।
उन्होंने ने कहा कि तकनीकी शब्दावली व ई-कुंभ जैसे भारतीय भाषाओं में ज्ञान का पोर्टल क्षेत्रीय भाषाओं के संवर्धन की दिशा में उल्लेखनीय पहल है। राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी ने 13 भारतीय भाषाओं में होने वाली विश्वविद्यालयीय संयुक्त प्रवेश परीक्षा (सीयूईटी-यूजी) भाषा विकास के क्षेत्र में नया अध्याय जोड़ रहा है। शिक्षाविदों का प्रयास है कि संपूर्ण ज्ञान-विज्ञान भारतीय भाषाओं में उपलब्ध हो।
इस अवसर पर संजीव शाक्य, राजीव पाली, गोविन्द शर्मा, एकता, दीक्षा आदि उपस्थित थे।