December 3, 2024

विधानसभा व नगर निकायों की मतदाता सूची में मतदाताओं की संख्या में बड़ा अंतर जांच का विषय।

पंचायत के चुनाव में असफल या पसंदीदा पार्टी से टिकट पाने से वंचित प्रत्याशियों के निकाय चुनाव लडने पर रोक क्यो नहीं?

भारत निर्वाचन आयोग द्वारा निर्मित मतदाता सूची को पूरी तरह शुद्ध और दोषरहित कहा जा सकता है क्योंकि वह फोटोयुक्त है, आधार कार्ड से लिंक है, ऑनलाइन है, प्रत्येक मतदाता को पहचान पत्र निर्गत किया गया है।

भारत निर्वाचन आयोग ने अनेक बार राज्यों से आग्रह भी किया है कि वे स्थानीय निकाय और पंचायत के चुनाव उसकी मतदाता सूची से करावें, जिससे भारी धन का व्यय रुकेगा। किन्तु राज्य तैयार नहीं हुए।

व्यहारत: उत्तर प्रदेश की भारत निर्वाचन आयोग की मतदाता सूची में अंकित मतदाताओं की संख्या व राज्य निर्वाचन आयोग उत्तर प्रदेश द्वारा निर्मित नगर निकायों(नगर पंचायत/नगरपालिका परिषद/नगर निगम) व पंचायतों की मतदाता सूची में अंकित मतदाताओं की संख्या बराबर होनी चाहिए। किन्तु ऐसा नहीं है ।

राज्य निर्वाचन आयोग उत्तर प्रदेश द्वारा नगर निकायों की जो मतदाता सूची तैयार की गई है उसमें ऐसे अनेक मतदाताओं के नाम सम्मिलित हैं जो पंचायत की मतदाता सूची में भी सम्मिलित हैं।

यही स्थिति पंचायतों की मतदाता सूची की भी है, उसमें अनेक ऐसे मतदाताओं के नाम अंकित है, जो किसी न किसी नगर निकाय के मतदाता हैं।

 इस प्रकार देखा जाए तो भारत निर्वाचन आयोग द्वारा निर्मित मतदाता सूची में अंकित उत्तर प्रदेश के समस्त मतदाताओं की संख्या से राज्य निर्वाचन आयोग उत्तर प्रदेश द्वारा निर्मित नगर निकायों व पंचायतों की मतदाता सूची में लगभग तीस प्रतिशत मतदाता अधिक हैं।

सबसे चौकाने वाली बात यह है कि हम एक देश एक चुनाव की बात करते हैं, किन्तु एक चुनाव आयोग की बात नहीं करते। कभी यह विचार क्यो नहीं होता है कि नगर निकायों और पंचायतों के चुनाव एक साथ कराए जावे। एक साथ चुनाव न कराने के दुष्प्रभाव यह है कि पंचायत चुनाव में असफल प्रत्याशी नगर निकायों के चुनावों में ताल ठोक देते हैं, और नगर निकायों में असफल प्रत्याशी पंचायत चुनाव में भाग्य आजमाते हैं।

वर्तमान निकाय चुनाव में अनेक ऐसे सम्भावित प्रत्याशी है जो वर्ष 2022 के पंचायत के चुनाव में अपना भाग्य आजमा चुके हैं, जिनके नाम नगर निकायों की मतदाता सूची में अंकित है ।

ऐसे प्रत्याशियों को चुनाव लड़ने की अनुमति देना सम्पूर्ण चुनाव प्रक्रिया को दूषित बनाता है साथ ही राज्य निर्वाचन आयोग उत्तर प्रदेश की स्वायत्तता पर भी प्रश्न चिन्ह खड़े करता है।

एक देश – एक चुनाव के साथ ही एक चुनाव आयोग और एक मतदाता सूची के मुद्दे पर भी बहस की आवश्यकता है ।

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