आज दिनाँक- 07.08.2022 को गिन्दो देवी महिला महाविद्यालय बदायूँ की आंतरिक गुणवत्ता आश्वासन प्रकोष्ठ के तत्वावधान में प्राचार्या डॉ वंदना शर्मा के संरक्षण एवं निर्देशन में व कॉर्डिनेटर आंतरिक गुणवत्ता आश्वासन प्रकोष्ठ व प्रभारी मिशन शक्ति असिस्टेंट प्रोफेसर सरला देवी चक्रवर्ती के संयोजन एवं नेतृत्व में चलाए जा रहे में चलाए जा रहें “मिशन शक्ति विशेष अभियान के तहत विश्व स्तनपान सप्ताह के अंतिम दिवस “मनुष्य के जीवन में प्रथम 1000 दिनों का महत्व” पर ऑन लाईन व्हाट्सएप ग्रुप के माध्यम से विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम का शुभारंभ प्राचार्या प्रोफेसर डॉ वंदना शर्मा व संयोजिका असिस्टेंट प्रोफेसर सरला देवी चक्रवर्ती के द्वारा माँ शारदे को नमन् कर किया गया। छात्राओं को संबोधित करते हुए प्राचार्या प्रोफेसर वंदना शर्मा ने बताया कि मनुष्य जीवन अत्यंत अनमोल है। जन्म के पहले 1000 दिन, गर्भावस्था से लेकर पहले दो वर्ष बच्चों के सर्वागीन विकास के लिए एक अनूठा अवसर होता है। इसी दौरान बच्चों के संपूर्ण स्वास्थ्य, वृद्धि और विकास की आधारशिला तैयार होती है, जो पूरे जीवन बच्चे के काम आती है। लेकिन अक्सर गरीबी और कुपोषण के कारण यह आधारशिला कमजोर हो जाती है, जिसके कारण समय पूर्व मौत और शारीरिक विकास प्रभावित होता है। हम इन 1000 दिनों को इस प्रकार से बांटते हैं:- गर्भकाल के दिन- 270, बच्चे के जन्म के दो साल – 730 दिन। जीवन के प्रथम 1000 दिन इसीलिए महत्वपूर्ण होते हैं क्योंकि यह बच्चे के विकास, बढ़त और स्वास्थय के लिए एक महत्वपूर्ण अवधि होती है जिसमें हम बच्चे व माँ को सही समय व सही पोषण प्रदान कर उसे एक स्वस्थ व खुशहाल जीवन प्रदान कर सकते हैं |
कार्यक्रम संयोजिका असिस्टेंट प्रोफेसर सरला देवी ने बताया कि कुपोषण का एक चक्र होता है और इस चक्र को तोड़ना अत्यंत आवश्यक है यदि एक किशोरी कुपोषित है तो वह भविष्य में जब गर्भवती होगी तो वह कुपोषित ही रहेगी और एक कुपोषित बच्चे को जन्म देगी। प्रथम 1000 दिनों में उपलब्ध पोषण बच्चों को जटिल बीमारियों से लड़ने की ताक़त देता है।बच्चे के जीवन के प्रथम 1000 दिनों में उचित पोषण की कमी के ऐसे परिणाम हो सकते हैं जिन्हें पुनः परिवर्तित नहीं किया जा सकता है। मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए डी पी महाविद्यालय सहसवान की प्राचार्या डॉ शुभ्रा माहेश्वरी ने बताया कि पहले 1000 दिन बच्चे के जीवन की नींव होते हैं । हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि बच्चा जब दुनिया में आएगा तब ही उसके खान-पान पर ध्यान देना है , बल्कि बच्चा जिस दिन से माँ के गर्भ में आता है उसी दिन से उसका शारीरिक मानसिक विकास होना प्रारंभ होने लगता है।बच्चा जब तक माँ के गर्भ में होता है तब तक वह पूर्णतः माँ के भोजन पर निर्भर होता है। अतः गर्भावस्था के दौरान माँ को आयरन, फोलिक एसिड व आयोडीन युक्त भोजन व संतुलित आहार का सेवन करना चाहिए ताकि गर्भ में पल रहे बच्चे को पोषण मिलता रहे।
प्रसव के पश्चात् 6 माह तक शिशु को केवल स्तनपान कराना चाहिए तथा 6 माह के बाद बच्चे को कम से कम दिन में दो से तीन बार खाना खिलाये । पूरक आहार न लेने से बच्चा इसी उम्र से कुपोषित होना शुरू हो जाता हैं,बच्चें को एनीमिया, विटामिन ए की कमी, जिंक की कमी हो सकती है। गर्भावस्था में-आयरन व फोलिक एसिड से भरपूर भोजन, जो कि गर्भ में पल रहे बच्चे के विकास व बढ़त के लिए जरूरी है।
6 माह के शिशु के लिए- माँ का दूध 6 माह तक बच्चे की सभी पोषक तत्वों की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। अतः 6 माह तक शिशु को केवल स्तनपान कराना चाहिए। मुख्य अतिथि वक्ता उपप्राचार्य डॉ गार्गी बुलबुल ने बताया कि 6 माह से 2 साल तक की अवस्था में फल, फलियाँ व प्रोटीनयुक्त पदार्थ बच्चों को दिया जाना चाहिए जो कि उनके सम्पूर्ण विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। छात्रा पलक वर्मा ने बताया कि विश्व स्तनपान सप्ताह का उद्देश्य प्रसूता व शिशुवती महिलाओं के बीच स्तनपान के लिए जागरूकता बढ़ाना है, क्योंकि यह बच्चों के साथ-साथ माताओं के स्वास्थ्य के लिए भी जरूरी है। बच्चे के अच्छे स्वास्थ्य के लिए स्तनपान की जिम्मेदारी माता के साथ साथ परिवार व मुख्य रूप से पिता की भी होती है। डॉ निशी अवस्थी, डॉ उमा सिंह गौर सहित समस्त महाविद्यालय परिवार की सक्रिय सहभागिता रही।