सचिव अरविन्द पाराशरी एडवोकेट सहित उनकी पत्नी, सास , ससुर और साले बनाए गए थे अभियुक्त।
सी जे एम ने सिविल बार सचिव के विरुद्ध दायर प्रोटेस्ट अर्जी की खारिज।
दीपक तिवारी और उनकी पत्नी के मध्य कुटुम्ब न्यायालय मे दहेज उत्पीड़न का मुकदमा चल रहा था, जिसके वचाव के लिए ६ अगस्त २०१९ को मुख्यमंत्री को शिकायत कर तीन वर्ष बाद ९ नवंबर २०२२ को थाना कोतवाली बदायूं में धारा ३०७ ,३२८ में वाद दर्ज करा दिया
तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक डॉ ओ पी सिंह के हस्तक्षेप से थाना कोतवाली पुलिस द्वारा ५ दिसम्बर २०२२ को वाद निरस्त कर दिया गया। साथ ही वादी के विरुद्ध १८२ आई पी सी के अन्तर्गत चालानी रिपोर्ट प्रेषित की गई।
थाना कोतवाली पुलिस ने उक्त मुकदमे की विवेचना की , विवेचक उप निरीक्षक आकाश कुमार ने अपनी आख्या में कहा कि वादी ने कुटुम्ब न्यायालय में चल रहे मुकदमे के बचाव के लिए झूठी रिपोर्ट दर्ज कराई पुलिस का सरकारी समय खराब किया।
सी जे एम ने १५ जुलाई २०२३ को आख्या पंजीकृत कर वादी को नोटिस जारी किया। वादी ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से २९ जनवरी २०२४ को प्रो टेस्ट अर्जी सीजेएम कोर्ट में पेश की । सी जे एम मोहम्मद साजिद ने सुनवाई के पश्चात प्रोटेस्ट अर्जी को खारिज कर दिया ।
बदायूं जिला सिविल वार एसोसिएशन के सचिव अरविंद पाराशरी ने कहा है कि इस मुकदमे में मेरा नाम घसीटना , एक बहुत बड़ा षड्यंत्र था , 2018 में यह मामला झूठा पाया गया , जब कोई कार्रवाई नहीं हुई तो यहां के कुछ लोगों को यह रास नहीं आया
और 3 साल बाद , उक्त घटना को बनाकर मुख्यमंत्री को फर्जी शिकायत कराई गई , उन लोगों का उद्देश्य मेरी छवि को खराब करना था ।
साथ ही सिविल वार परिसर में तंदूर रखे जाने को लेकर विरोध करने पर , तत्कालीन कोतवाल रूष्ट हो गये थे , उन्होंने 3 साल पुरानी घटना की एफआईआर दर्ज कर ली। हालांकि तत्कालीन एसपी डॉक्टर ओ पी सिंह द्वारा कोतवाल को फटकार भी लगाई थी ।