कैसा नारी शक्ति वंदन…..?
संसद और राज्य विधानमंडलों में नारी को ३३ प्रतिशत आरक्षण देने हेतु लम्बे अंतराल के बाद बर्ष २०२३ में देश की संसद ने नारी शक्ति वंदन अधिनियम पारित कर दिया, लेकिन इस कानून के लागू होने मे अभी कई बर्ष लगेगे।
प्रारंभकाल से ही सभी राजनैतिक दल महिला आरक्षण के समर्थन में रहें हैं, नारी शक्ति वंदन अधिनियम को पारित कराने में सभी राजनैतिक दलों की भूमिका रही है।
नारी शक्ति वंदन अधिनियम के पारित होने से नागरिकों को लगा कि ये आरक्षण तत्काल लागू हो जायगा, साथ ही २०२४ के आम चुनाव में ३३ प्रतिशत सीट महिलाओं के लिए आरक्षित रहेगी। किंतु ऐसा नहीं हुआ।
अब देखना यह है कि राजनैतिक दल वास्तव में महिलाओ की राजनैतिक भागीदारी चाहते हैं, यदि ऐसा होता तो महिला आरक्षण की चर्चा के समय से ही सभी राजनैतिक दल महिलाओं को संगठन में पर्याप्त प्रतिनिधित्व देकर, विभिन्न चुनावों में तिहाई टिकट महिलाओं को देकर महिला आरक्षण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जता सकते थे।
नारी शक्ति वंदन अधिनियम पारित होने के पश्चात पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव घोषित हो चुके हैं। कानून पारित होने के बाद लगा कि राजनैतिक दल इन चुनावों में महिला प्रत्याशियों को वरीयता देगे, लेकिन राजनैतिक दलों का रवैया निराश करने वाला रहा है।
बहुजन समाज पार्टी और तृणमूल कांग्रेस को छोड़ दे तो किसी भी राजनैतिक दल मे राष्ट्रीय अध्यक्ष महिला नही है। इन दोनों दलों में महिला नेतृत्व होने के बाबजूद भी पर्याप्त महिला प्रतिनिधित्व नहीं है। अन्य दलों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व महिला मोर्चा तक ही सीमित है, दलों की नीति निर्धारण में महिलाओ की भूमिका नगण्य ही है।
पांच राज्यों के चुनाव में राजनैतिक दलों द्वारा नारी शक्ति वंदन मे रूचि न दिखाना “नारी शक्ति वंदन अधिनियम २०२३” के भविष्य को प्रश्नचिन्हित करता है।
हरि प्रताप सिंह राठोड़, अधिवक्ता
अध्यक्ष/संस्थापक
जन दृष्टि (व्यवस्था सुधार मिशन)