कविता का शीर्षक
ग्रह लक्ष्मी बिन घर भी सूना लगता है।
नारी जहां पूजी जाए देवों का निवास हो,
नारी जिस घर में सुख समृद्धि का वास हो।
नारी बिन तो पुरुष अधूरा लगता है,
गृह लक्ष्मी बिन घर भी सूना लगता है।।
(१) नारी हांड मांस का पुतला मात्र नहीं है,
अपनी शक्ति शौर्य का परिचय देती आई है।
समय के भिन्न-भिन्न तरह के पड़ावों पर,
सबको सहारा वह देती चली आई है।।
उसका अपना वजूद और अस्तित्व है,
ऐसी आत्मा है ये जो रक्षा करती आई है।
अपृतिम भारतीय नारियां जो जन्म देतीं,
शुरू से ही अपना व्यक्तित्व गढ़ती आई है।।
भारतीय नारी जिसने लेना नहीं जाना है,
भारतीय स्त्री जिसने देना ही तो जाना है।
नारी द्वारा नर को जीवन मिलता है,
गृह लक्ष्मी बिन ——————–।।
(२) सूर्य देव की ही भांति नारियों ने अपने,
स्नेह की ऊष्मा से सबको खिलाया है।
भगवान आदित्य की किरणों की तरह ही तो,
उसने हर अंधेरे को दूर कर भगाया है।
वह साम्राज्ञी है सुर साम्राज्ञी भी,
जिसने अपने स्वर से पूरे विश्व को हिलाया है।
अपनी मुस्कान से उसकी प्यारी गोद ने,
शिशुओं के लिए सुंदर पालना बनाया है।।
पर्वतों की ऊंचाई भी उसने ही मापी हैं,
सिंधु की की अटल गहराइयां भी नापी हैं।
उसकी ममता से ही भाग्य संवरता है,
गृह लक्ष्मी बिन ———————-।।
(३) एक नहीं दो दो मात्राएं भारी नारी पर,
नारी किसी तरह शूरवीरों से है कम नहीं।
नर से सदा आगे रही देखो भारतीय नारी,
नारी किसी तरह सत्पुरुषों से कम नहीं।।
भारतीय नारी बुद्धि वीर कर्मवीर है,
नारी किसी तरह युद्ध वीरों से भी कम नहीं।
भारतीय नारी दानवीर क्रांतिवीर है,
नारी किसी तरह क्रांतिकारियों से कम नहीं।।
रणवांकुरों को जन्म देने वाली नारी है,
महापुरुषों को जन्म देने वाली नारी है।
नारी सदा से ही पुरुषों की सफलता है,
गृह लक्ष्मी बिन ——————–।।
(४) पर्वतों को काटकर सड़के बनाए वो,
सैकड़ों मरुभूमि में नदियां बहाए वो।
जंगलों में देखो महामंगल रचाए वो,
गर्भ में नीर के भी बेड़े को चलाए वो।।
असंभव को संभव भी खुद कर दिखाए वो,
नामुमकिन को मुमकिन कर दिखलाए वो।
कार्य स्थल में पड़े रोडे़ को हटाए वो,
असफलता को हल कर सफल बनाए वो।।
भारतीय नारियों की देखो क्या मिसाल है,
उसके कारनामे देखो होते बेमिसाल है।
नारी में ही नर का वैभव ढलता है,
गृह लक्ष्मी बिन ——————–।।
(५) इंदिरा जी से कल्पना की अंतरिक्ष उड़ान तक,
मदर टेरेसा से पन्नाधाय के बलिदान तक।
भारत कोकिला से लेकर स्वर साम्राज्ञी तक,
रानी पद्मावती से रानी दुर्गावती तक।।
गार्गी की विद्वता से विश्पला की वीरता तक,
सती सावित्री से लेकर कौशल्या की धीरता तक।
सारंधा के त्याग से रानी लक्ष्मी बाई तक,
रानी कर्मवती से माता जीजाबाई तक।।
उसने उपलब्धि और कीर्ति फैलाई है,
चारों ओर जीत की पताका भी फहराई है।
नारी से ‘मंजुल’घर में स्वर्ग झलकता है,
गृह लक्ष्मी बिन ——————-।।
मनोज मंजुल ओज कवि
जनपद कासगंज (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल नंबर 9457022318