अबला नही सबला हो तुम
अबला नहीं सबला हो तुम,
इस दुनिया की पहली व्यंजना हो तुम,
मोहताज नहीं तुम किसी गुलाब की,
तुम तो खुद बागवान हो इस पूरे, कायनात की
तुम बिन सूना हे परिवार,
तुम हो आने वाले कल का आधार
कलयुग में अवतार हो महाकाली खप्पर वाली हो,
कोमल नहीं कमजोर नहीं तुम फौलादो को पाली हो,
महिषासुर नरसंहारी हो
अबला नहीं सबला हो तुम,
इस दुनिया की पहली व्यंजना हो तुम,
जब हो जीवन में तुम संग,
तुमसे ही हे होली के रंग,
लक्ष्मी भी तुम सरस्वती भी तुम,
अमावस पर दीपो की रोशनी हो तुम,
खूबसूरती का नाम हो तुम
आसमां के पुनम का चाँद हो तुम,
तुम बिन फिकी है चांदनी,
चंदन बिन सुना है वन राज
तुम ही हो चंदन का सरताज,
चंदन से मीत हुआ है प्रेम मन सना हुआ है,
तुम ही इस सुंदर सृष्टि का संचार,
तुम्हारी करुणा है अपरम्पार
तुम हो धरती पर अवतार,
अबला नही सबला हो तुम
इस दुनिया की पहली व्यंजना हो तुम।
रचना
श्रीमती ज्योत्सना मालवीय जिला – झाबुआ , मध्यप्रदेश