मैं कौन हूँ ?
अपने अस्तित्व को तलाशती,
निःशब्द हूँ, मौन हूँ ।
क्या मै पथिक हूँ ?
जीवन पथ पर बढती हुई,
कहीं रूकती हुई,
कभी चलती हुई,
प्रेम की ठंडी छाँव,
ढूँढती ,नहीं थकती हुई,
मखमली, कटीली ,
हर राह पर चलती हुई,
हाँ, शायद पथिक हूँ मैं ।
मैं कौन हूँ ?
अपने अस्तित्व को तलाशती,
निःशब्द हूँ, मौन हूँ ।
क्या मै प्रेम हूँ ?
जीवन पथ पर बढती हुई,
प्यार बाँटती,
बटोरती हुई,
रिश्तों में अपना वजूद,
ढूँढती हुई,हँसती हुई,
रसीले,कटीले,
हर रिश्ते को सँभालते हुए,
हाँ, शायद प्रेम हूँ मैं ।
मैं कौन हूँ ?
अपने अस्तित्व को तलाशती,
निःशब्द हूँ, मौन हूँ ।
क्या मैं नदी हूँ ?
जीवन पथ पर बढती हुई,
कभी मचलती हुई,
कभी ठहरती हुई,
किनारा ढूँढती हुई,
लहराती हुई,
बलखाती हुई,
हर कश्ती को बचाती हुई,
हाँ , शायद नदी हूँ मैं ।
मैं कौन हूँ ?
अपने अस्तित्व को तलाशती,
निःशब्द हूँ, मौन हूँ ।
क्या मै स्त्री हूँ ?
जीवन पथ पर बढती हुई,
कभी हँसती,
कभी रोती हुई,
ममता की ठंडी छाँव,
देती हुई,कभी माँ बनती,
कभी पत्नी, कभी बेटी बन ,
प्यार बाँटती हुई,
हर किसी के अस्तित्व
को सँवारती हुई,
सृजन और पोषित,
करती हुई,सिर्फ देती रही,
हाँ, मै स्त्री ही हूँ ।
मैं कौन हूँ ?
अपने अस्तित्व को तलाशती,
निःशब्द हूँ, मौन हूँ ।
हाँ, मै स्त्री ही हूँ ।
संपूर्ण, सृष्टि की सृजनहार,
नव अंकुर की पालनहार,
वात्सलय व प्रेम की मूर्ति,
रिश्तों की स्फूर्ति,
नैसर्गिक कलाकार,
प्रकृति का उपहार,
हाँ, मै स्त्री ही हूँ …
वंदना ‘शरद ‘