नारी
यूं तो समझा जाता है कमजोर,
पर नहीं रहा कोई ऐसा ज़रा दौर,
जब नारी ने मानी हो ऐ नर हार,
दिखाती है नर तुझे नारी संसार।
हालांकि हैं मनुष्य यहां पे दोगले,
करते अन्याय जिनकी गोद में पले,
पल पल बदलते जैसे हर शाम ढले,
स्वतंत्रता हक न्याय नारी के खले।
जागृत होना होगा जहां तुझे नारी,
नहीं हैं तू किसी की यहां बलिहारी,
बनना होगा ज्ञान संग संस्कारवान,
बढ़ना है आगे संग आत्म सम्मान।
कहे कर कलम से यूं कलमकार,
कर स्व क्षमता ताकत स्वीकार,
नारी हैं होती नर गुणों की खान,
कर खुद की अब मास्टर तू पहचान।
स्वरचित मौलिक रचना
मास्टर भूताराम जाखल
सांचौर,जालौर,राजस्थान