जगह जगह पर शोर बहुत है,
कौन सुने आवाज |
यहाँ पकाते स्वाद सभी है,
करते कब है काज ||
अर्थ बताओ संवत क्या है,
मिटे यहाँ अज्ञान |
फाग रखे भी ज्ञान बहुत है,
क्या समझे नादान ||
आग लगाते जगह जगह पर,
वन करते वीरान |
कभी जलाते याद नहीं है,
बनते जगमें उदान ||
होली रखती ज्ञान बहुत है,
सदा कहे विज्ञान |
कृत्रिम रंग वाले क्या जाने,
भिक्षा समझे दान ||
अरे जगाओ खुद को तुम भी,
उचित नहीं है स्वांग |
रहो निराला ज्ञान जगत है,
क्यो भटके पी भांग ||
संजय निराला