है उदार हृदय नारी का,
महिमा उसकी गाते हैं।
है जग की सृष्टि कर्ता वह,
उसकी कथा सुनाते हैं ।।
आदि काल से होता आया,
नारी का सम्मान सुनो।
नारायण से बढ़कर नारी,
मत उसका अपमान करो।
जन्म लिया तुम पहली गुरु हो,
तुम से ही शिक्षा पाते ।
नर और नारायण को लाई,
नारी शक्ति तुम बतलाते।
संयम,त्याग, तपस्या का ,
नारी एक उदाहरण है ।
युगों युगों से होता आया,
शास्त्रों में उच्चारण है।
बन कर पन्ना धाय कभी तो,
अपना पुत्र गंवाया है।
फिरै कल्पना अंतरिक्ष में,
जग जिसने विसराया है।।
दो कुल को रोशन करती है ,
फिर क्यों उसका शोषण है।
काम काज सब करती घर का,
करती सब का पोषण है।।
सीता सावित्री दुर्गा बन ,
कभी कल्पना अति भाती,
माया,ममता, इंद्रा बनकर,
प्रतिभा राष्ट्रपति बन जाती।।
फूलों जैसी कोमल नारी,
कष्ट हजारों सहती है ।
दुख को सहती, कुछ न कहती,
बल बेदी पर चढ़ती है।।
मन ही मन में वह रोती है,
बाहर से मुस्काती है।
घर के करती काम सदा वह ,
सबको ये बतलाती है।।
लिखती सबका जीवन है जो,
उस पर हम क्या लिख पाएं।
नतमस्तक हो करें वंदना,
उससे ही शिक्षा पाएं।।
दिन भर करती काम सदा वह,
बात यही बतलाते हैं।
है उदार हृदय नारी का,
महिमा उसकी गाते हैं।
है जग की सृष्टि कर्ता वह,
उसकी कथा सुनाते है ।।
स्वरचित
सतीश कुमार
सहायक अध्यापक
प्राथमिक विद्यालय कछपुरा सरेंडा
ब्लॉक खेरागढ़ जिला आगरा
उत्तर प्रदेश