*नारी -महत्व*
(8 मार्च महिला-दिवस पर)
नारी लेती *जन्म* कि जब,
प्रकृति अपना रुप बढ़ाती है।
प्रकृति अपने *पुरूष-पात्र* को,
जब यहां *अकेला* पाती है।
शक्ति से जब *ललित-भाव* का, *मेल* कराना होता है।
तब अनायास नारी को,
इस *भू-तल* आना होता है।
नारी वह *इतिहास-चित्र,*
जिसमें *जौहर* भी सजते है।
कितने होंगे शेष *पुरूष*,
जो नारी से *बच* सकते हैं।
लेखक रचते *अमर-ग्रंथ,*
पर नारी *लेखक* रचती है।
हर *सफल* पुरूष के पीछे तो,
वह एक *नारी* ही बसती है।।
यदि *युग* का *कल्याण* चाहते हो,
तो नारी को *जाग्रत* होने दो।
जाने दो *युद्धों* की आँधी,
*शाँति की वर्षा* होने दो।।
*राज किशोर वाजपेयी”अभय”*
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